Sunday, May 1, 2011

सजदा मेरे रब का

  1. कैसे मान लूँ वो नहीं चाहती मुझे ..जब भी आइना देखा ..आँखों में मेरी वो मुझी से आगोश मांगती है ..योगी
  2. फिर हुई शब् गहरी ..डूबता याद में तेरी ..ए खुदा तेरा अहसास.. हाँ तू यंही आस पास .. मीठी शब्..मीठे ख्वाब =योगी
  3. ठहरे ठहरे कदम ...बहुत दूर मंजिले सकूँ ..और एक नशा हर कदम ..योगी
  4. तेरे चहरे पर जो ये आजकल इक नूर आब है ..मेरी मोहब्बत की पाकीजगी का गहरा असर है !!योगी
  5. तो तुम जान ही गई ..कि तुम्हारी  अदा से किसी की जान गई ?? योगी 
  1. बढ़ चलोगी क्या . साथ मेरे, क्षितिज तक,ओह मेरी नशा ..योगी
  2.  
  3. काश तुझे कुछ अहसास होता ...बंदा भी कुछ खास होता ...

  4. यही तो होता है ..अक्सर .. तेरा होना ..और जुबाँ का यूँ लडखडाना

     

      4 comments:

      1. गहरी अभिव्यक्ति छिपी है इन पंक्तियों में।

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      2. बहुत भावमयी ,प्रेममयी सुंदर रचना /इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई /
        please visit my blog again and leave the comments also

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      3. फिर हुई शब् गहरी ..डूबता याद में तेरी ..ए खुदा तेरा अहसास.. हाँ तू यंही आस पास .. मीठी शब्..मीठे ख्वाब

        bahut khoob likhte hain aap...

        mujhe nahi pataa ki aapke is lekhan ko sahitya ki bhasha me kya kaha jata hai... par jo bhi hai ye... har baar dil ko chhoo jata hai

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