Wednesday, May 4, 2011

तपन ..







पैरों तले सूखी पत्तियाँ चटक रहीं थीं
दूर धुंधलके में खड़ी वो जयपुर   जाने वाली बस का इंतज़ार कर रही थी..
गर्म हवा से बचने के लिए वो बार बार अपनी किताब से चैहरे को ढक लेती ...पर ये प्रयास बेमानी ही था ..में उसे देख रहा था ये अहसास उसे था ..पर अजनबी की तरह उसने एक उड़ती नज़र भी न डाली ..बार - बार घडी देख उसने जताया उसे यंहा से जल्दी निकलना है ....
मै खुद असमंजस में  खड़ा सोच  रहा था ...क्या वास्तव में वो इतनी ही अजनबी है ...तभी उसकी  बैचेनी भरी आँखों में एक चमक जगी ..बस की घरघराहट भरी आवाज़ ने उसे सकूँ दिया ...
बस के रुकते ही वो लपक कर सामान उठा बस की और ऐसे बड़ी मानों वो कुछ और देर यंहा ठहरी  तो झुलस जायेगी...मै बेचैन हो उसे रोक ..कुछ कहना चाह रहा था ..पर जैसे जड़ हो गया ..बस से निकलता जहरीला धुंआ उसे निगल रहा था ...तभी वो रुकी.........................................मै धक् सा रह गया ...उसने चेहरा मेरी और घुमाया और देखा ..उसकी आँखों मे वही बैचेनी अब तरलता से भरी थी ...जैसे पूछ रही हों - क्या ?...कैसे कहूँ ...फिर वो बस की और चल दी .....गर्म हवा ने मेरे बदन को उस पल में जला  सा दिया...जलता  खून आँखों से पानी की दो बूंदों में बदल फिसल गया..................................... बस पुल को पार कर तेज गती से भाग रही थी ....में जडवत खडा था .....में लोटने के लिए मुड़ने ही वाला था कि...मेरी नज़र सड़क पर पड़ी ...वहाँ  जँहा  वो खड़ी थी ..वो ही फूल ...लिली का फूल  पड़ा था ..गर्म हवा उसे झुलसा रही थी.


7 comments:

  1. आप तो भाई बहुत अच्छा लिखते हो, दूर मंजिल, ठहरे से कदम,एक नशा, एक सुकूं,। प्यार की पवित्रता का भाव चेहरे पर एक चमक के रुप में ।और भी किसी की अदा ठहरी किसी की जान गई।गहरी रात और उनका अहसास । बहुत उत्तम । चार मई का मेरी समझ में कुछ आ न सका माफ करना।

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  2. बृजमोहन जी बहुत धन्यवाद !

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  3. क्या कल्पना है. very gud

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  4. क्या बात है बहुत खूब और बहुत बढ़िया पोस्ट!

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  5. बहुत दिन बाद आया आपके ब्लॉग पर क्या करे इम्तेहान चल रहे है

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