- रफ्ता- रफ्ता ये दिन गुजर जायेंगे ..पर ये लम्हें याद तो आयेंगे ..इन लम्हों को कुछ यूँ सजाये..कि बस वक्त की रेत बन न गुजर जाएँ ..योगी
- मेरे हाथों की लकीरों में ..देखता हूँ तेरे ख्वाब लिपटे से ...हर दफा एक नया अहसास देतें हें वो मुझे = योगी
- ताज़ा से नर्म ..मुलायम रिश्ते ...जिंदगी तू खुबसूरत है ..योगी
- डर लगता है मुझे अपनी तन्हाई से ..ज़रा मुझे इस भीड़ से दूर ले चलो - योगी
- मैंने तुझे खुदा माना ..ये मेरी चाहत की बुलंदगी थी ..तुने ले लिए यूँ फैसले अकेले या रब ..ये तेरी दगाबाजी थी =योगी
- ये दास्ताँ भी जो गुजर रही है .. एक दिन बहुत याद आएगी ..तेरी आँखों के ये कातिल नश्तर ..तब बादल सा बरसायेगी -योगी
- पूछा था जो किसी ने ..रब का रूप कैसा बोलो ?? .. चल पड़े तेरी गली को एक और सजदे को ..योगी
- इक मुसाफिर हूँ .. गुजर रहा ..राहे - जिंदगी ... मुड कर जो देखा ..चेहरे कई जाने पहचाने ..फिर याद आये ...फिर याद आये ...-योगी
Saturday, May 7, 2011
क्षण
Labels:
yogesh kumar amana,
कुमार योगेश'योगी'
Location:
Nathdwara, Rajasthan, India
दर्द।
ये कैसी अजब ख़ामोशी है ..
ये कैसी जलन ,मदहोशी है ..
हर तरफ है ये बिखरे घरौंदे ..
बेहोशी ...बेहोशी, बेहोशी हे ..
Wednesday, May 4, 2011
तपन ..
पैरों तले सूखी पत्तियाँ चटक रहीं थीं
दूर धुंधलके में खड़ी वो जयपुर जाने वाली बस का इंतज़ार कर रही थी..
गर्म हवा से बचने के लिए वो बार बार अपनी किताब से चैहरे को ढक लेती ...पर ये प्रयास बेमानी ही था ..में उसे देख रहा था ये अहसास उसे था ..पर अजनबी की तरह उसने एक उड़ती नज़र भी न डाली ..बार - बार घडी देख उसने जताया उसे यंहा से जल्दी निकलना है ....
मै खुद असमंजस में खड़ा सोच रहा था ...क्या वास्तव में वो इतनी ही अजनबी है ...तभी उसकी बैचेनी भरी आँखों में एक चमक जगी ..बस की घरघराहट भरी आवाज़ ने उसे सकूँ दिया ...
बस के रुकते ही वो लपक कर सामान उठा बस की और ऐसे बड़ी मानों वो कुछ और देर यंहा ठहरी तो झुलस जायेगी...मै बेचैन हो उसे रोक ..कुछ कहना चाह रहा था ..पर जैसे जड़ हो गया ..बस से निकलता जहरीला धुंआ उसे निगल रहा था ...तभी वो रुकी.........................................मै धक् सा रह गया ...उसने चेहरा मेरी और घुमाया और देखा ..उसकी आँखों मे वही बैचेनी अब तरलता से भरी थी ...जैसे पूछ रही हों - क्या ?...कैसे कहूँ ...फिर वो बस की और चल दी .....गर्म हवा ने मेरे बदन को उस पल में जला सा दिया...जलता खून आँखों से पानी की दो बूंदों में बदल फिसल गया..................................... बस पुल को पार कर तेज गती से भाग रही थी ....में जडवत खडा था .....में लोटने के लिए मुड़ने ही वाला था कि...मेरी नज़र सड़क पर पड़ी ...वहाँ जँहा वो खड़ी थी ..वो ही फूल ...लिली का फूल पड़ा था ..गर्म हवा उसे झुलसा रही थी.
Sunday, May 1, 2011
सजदा मेरे रब का
- कैसे मान लूँ वो नहीं चाहती मुझे ..जब भी आइना देखा ..आँखों में मेरी वो मुझी से आगोश मांगती है ..योगी
- फिर हुई शब् गहरी ..डूबता याद में तेरी ..ए खुदा तेरा अहसास.. हाँ तू यंही आस पास .. मीठी शब्..मीठे ख्वाब =योगी
- ठहरे ठहरे कदम ...बहुत दूर मंजिले सकूँ ..और एक नशा हर कदम ..योगी
- तेरे चहरे पर जो ये आजकल इक नूर आब है ..मेरी मोहब्बत की पाकीजगी का गहरा असर है !!योगी
- तो तुम जान ही गई ..कि तुम्हारी अदा से किसी की जान गई ?? योगी
- बढ़ चलोगी क्या . साथ मेरे, क्षितिज तक,ओह मेरी नशा ..योगी
- काश तुझे कुछ अहसास होता ...बंदा भी कुछ खास होता ...
- यही तो होता है ..अक्सर .. तेरा होना ..और जुबाँ का यूँ लडखडाना
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