अनंत से अंतस..
1
2
जिंदगी भर कुली बने बोझ उठाते रहे ख्वाहिशो का ।।
जब उतरा तो बिचारी ख्वाहिशो ने दम तोड़ दिया ।।
योगेश अमाना 'योगी'
3.
क्या थे हम और क्या हो गए ।
अब तो अपने सपने भी सो गए ।।
योगेश अमाना 'योगी'
4
दूर उन झुरमुटों से झांकती रश्मियां कह रही जो अहसास है बहुत खास है शाम के कोहरे से लिपटी एक अदद प्यास है ।
योगेश अमाना 'योगी'
5
बहुत सुकूने खास पल जो दे गए वो मुस्करा पलट के जान ले गए
6
बस ग़ज़ल हुआ जाता हूँ ,जितना समजू खो जाता हूँ ।।
7
हर्फ़ से शब्द दूर ही कित्ते है तेरे मेरे ही जित्ते है ।।
योगेश अमाना 'योगी'
8
पत्ता पतझड का ,तपी धरती पे गिरा है।
बदले मौसम का ,ये भी एक सिरा है।।
फिर इस मौसम कोई झूमी ,
खिलखिलाई ।
ये मोह नशे में, राधा है की मीरा है ।।
योगेश अमाना 'योगी'
9
स्नेहरस सिक्त मधुर सुवास हो अति पास ।
10
सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते ।
रक़ीब रहा था परख ,हिसाब क्या देते।।
मुरझा रहे थे गुल बिना बागबां के ।
बादल लगे के बरसुं,जवाब क्या देते।।
'योगी'वो लौटा ,छोड़ शहर की गलियां ।
दर्द से भीगा वो चेहरा ,नकाब क्या देते ।।
योगेश अमाना 'योगी'
#KaafiyaMilaao
11.
कुछ इस तरहा करता , वो बातें ..
जैसे धीमी सी हो बरसातें
मेरा रब मुझे बहुत चाहता ..
कानों में ये सब गुनगुनाती रातें
योगेश अमाना 'योगी'
12
सुकून क्या है ...?? हम नहीं जानते..... ! शायद ये वो है ..... जो तुम्हारे पास आ के मिलता है..
योगेश अमाना 'योगी'
13
मैं कहता रहा अनकही बाते हवाओं से ..बात पहुँचती कैसे ॥पछुआ थी पवन -योगी
14
इश्क करे वो फ़ना होते होंगे ।
हमने तो इबादत की है ...
मुस्कराके झूमते है की नज़रो से मय पि है ..
योगेश 'योगी'
15
मैंने किरचें -किरचें जमा कर भेजी है तेरे झूठे वादों की टूटी तड़कन ।
कि तेरी मुहब्बत की अगली कहानी में ये फिर काम आ जाये ।।-योगेश अमाना 'योगी'
16
मशवरा तो खूब देते है लोग खुश रहा करो । कभी वजह नहीं देते ..योगी
17
बीमार हाल बैठे थे की बिन मांगे दवा मिल गई ।
उनके कदमो की आहट से साँसे खिल गई ।। -योगी
18
उस बिन क्या रहेगी जिंदगी फिर ।
जो छोड़ दे यूँ बंदगी फिर ।।
19
गुजरता है जिस्म आज भी गहरी रातों में उन रास्तों से जंहा गुजरे थे तुम्हारे क़दमों के निशां ।
20
तुम्हे तो पता भी नहीं । तुम कभी जुदा न थी ।।
जो रूह में रच बस गया हो कैसे जुदा हो
जिस्म जुदा होते होंगे । हमने रूह में समां लिया है रूह को तुम्हारी ।।
21
मत पूछना कभी कि इतना क्यों चाहता हूँ ।। मै अपने जीने की वजह बताने को मजबूर हो जाऊँगा ।।
22अ
भूल गई क्या सुरम्य रत्न वो मणि और शीत अति सुगंध।अष्टापद की चमकीली सुनहरी पाथिका और सुनहरी नील आभा वसन देह से लिपटा तुम्हारी। क्या सच भूल ही गई वो गहरी घनी घटाओ से घिरी अट्टालिकाओं से झांकना मेरा और खिलखिला भाग जाना तेरा । क्या भूल ही गई हे अलैका ?-योगी :(
22ब
बदली सी गहरी ये काली जुल्फ़े छाई ।जीवन सहरा में मधुमास बन आईं ।।
23
भी झपको पलक मेरा दिदार हो ।मेरे जैसा तुम्हे भी तो अहसास हो ।।-योगी
24
बढ़ी खामोश है ये महफ़िल सब बूत हुये या हम अजनबी।
25
दयार से दुरी देखो कमबख्त वक़्त ज़ालिम सा
26
कजरारे से नयन । घायल हुआ रे मन।। -योगी
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