- कल सुबह की मियाद है ..दरकते लम्हों के साथ दरक रहा ये खुबसूरत रिश्ता भी ?? योगी
- आवाज दूँ कहाँ तुझे.. कैसे तुझे पुकारूँ .. अपनेआपको पुकारना तो नासमझी होगी !! योगी
- अजब ; अजनबी सा अनजाना तेरा शहर ..कुछ धुंआ ..आँखों में जलन .. भागती जिंदगी ..रुक तो ठहर ज़रा ठहर ..योगी
- तेरे इश्क ने है इस तरहा सताया ...कि ढूँढा तो हर शय के बाद तुझे मुजी में पाया - योगी
- इस तरह जाना कि क्यूँ ...सूखे पत्तों सा मिटना !होता है ये भी कभी - कभी ...नयी कोंपल का खिलना ..योगी
- थोड़ी ही पी थी हाला हालात की ..पर असर कुछ अलग ..अंदाज़ कुछ अलग - योगी
- कुछ इस तरहा होती है बातें ..आजकल ...की जैसे घटाएं पिघल रही हों !!
- आँखों में छिपे है कई खुशनुमा सदियों के जज्बात..इनको यूँ छुपाया तो न करो
- जाने कब से है ये रूहानी सफर..यूँ अजनबी सा मुस्कराया तो न करो -योगी
- बहुत ऊँचे है महल उनके चीटी से नज़र आतें है ..पर जब मिलती है परवाज़ हम को तो बाज़ बन जातें है !सावधान
- पिघल रहा आसमाँ ..सहला रही नम बूदें अहसास मेरे ..गहराता अंधेरा दिन मे..धरा सुवास आसपास मेरें..योगी
- यो यो करना तो याद रहा ...जय सियाराम भूल गया...याद तो रहा उसे डार्लींग का गिफ्ट...माँ की दवाई भूल गया
- गुज़र गए है लम्हे कई बिन तेरे ।जाने है तुजको ख्वाब ये मेरे।।खोजती रही निगाहें बैचैन सी ।थीं ना होके भी जीवन में मेरे ।। -योगेश 'योगी'
- मुझे लगा था की मै बहुत खुश किस्मत हूं मुझे सब चाहते है, मगर कहा पता था की चाहते तो सब है पर अपने मतलब के लिए ।
Saturday, February 25, 2012
सुनो तुम..
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