Tuesday, March 29, 2016

ग़ज़ल

1.
कि अब मुहब्बतों का ,तकाज़ा किया न जाए ।
फ़िज़ां में है घुलता धुंआ, भरोसा किया न जाए ।।
परिंदों की ये उड़ानें, पिंजर दफ़न न हो ।
परों में है आज़ादी उन्हें,तन्हा किया न जाए।।
चुराकर रोटी का टुकड़ा,क्या जायेगी भूख तपन ।
मासूम थे वो हाथ ,तमाशा किया न जाए ।।
खिली थी वो कली के,मुस्करा के जहां में ।
जननी है वो उसको तो ,रुखसत किया न जाए।।
'योगी'वो धरती सींचकर,देते हमें दाना ।
मंदिर सा है दिल उनका ,फना किया न जाए ।।
योगेश अमाना 'योगी'

2.

सरहदों की बंदिशों से अब लगता है ।
कोई काली रातों ,यादों में जगता है ॥
खुश्क रेतीली हवाओं की झुलसन ।
कोई ठंडी राखों में भी सुलगता है ॥
'योगी' जंजीरों में जकड़ा बेगुनाह वो ।
पल- पल बेरहम वक्त भी उसे ठगता है॥
-योगेश अमाना 'योगी'

3.

सुबह -शाम कही सुनी बातें ,कि जाहिल मै था।
और जुबां पे आ ही ना पाया,जो मेरे दिल में था ।।

भटकते रहे उसकी तलाश में दर -ब- दर चातक से।
तूफां को मंजिल समझ भुला, कि क्या साहिल में था।।

गुजरते बादल ने बरसते कहा ,'योगी 'गैर हुआ है अपना ।
हंसते -हंसते आँखों में पानी ,भूल गया महफ़िल में था।।
              -योगेश अमाना 'योगी'
4
वक्त लौटा दो सावन ,नफ़ा हो जाये।
मेरा जिस्म मुझसे भले खफ़ा हो जाये।।
गुजरे वो पल बीते वो मंजर फिर।
मेरी सिली यादें बेवफा हो जाये।।
'योगी 'वो रूठा तो रूठा सही मगर।
अबकी बारिश फिर वफ़ा हो जाये ।।
-योगेश 'योगी'