Sunday, June 16, 2013

पीपल की छांव।



पीपल की छाँव ♥

थकान भरे सप्ताह के बाद ....एक छुट्टी का दिन ... आह ! आज रिलेक्स मूड था सोचा
किताबो की अलमारी साफ़ कर ली जाये .. मै किताबों को उलट पलट रहा था .. कि सहसा लाल रंग के कपडे में लिपटी वो किताब नज़र आई .. जो गुरूजी ने गाँव में आठवी कक्षा में सबसे ज्यादा नंबर लाने पर उपहार दी थी ....हिंदी शब्दकोश

पत्ते पलटे तो.. अचानक उनके बिच रखा वो पीपल का पत्ता दिखा ...हाँ वो पत्ता जिसने मुझे एक नयी राह दिखाई थी I उस पीपल के पत्ते को हाथ में लेकर मै धीरे- धीरे यादों की धुंध में खोता चला गया .. हाँ वो दिन आज भी दीखता है स्पष्ट सा I
मेरा बिछोना मै हमेशा खिड़की के पास लगाता था ..जहां से गाँव की चौपाल ...
और घर से लगा शिव मंदिर दीखता था I

और जब भी सुबह आँख खुलती तो मै अक्सर देखता ..दादी उस पीपल के पेड़ पर जल चढाती और शिव पंचाक्षर मन्त्र बोलती जाती ..शिव मंदिर की घंटी गूंजती ... हाँ पुरे गाँव का पूजनीय,प्रिय सबसे बूढ़ा पेड़ ...दादा अक्सर कहते " रे छोरों ! ये पेड़ तो पुरे गाँव का दद्दा है ..कई पीढ़ी इसकी छाया मे पली बढ़ी है "
..इस पीपल की एक डाल मेरे घर के अहाते मे आती थी और दूजी पड़ोस मे रहीम चाचू के आँगन में ...जो गाँव के सरपंच भी थे I

मुझे और गाँव की पूरी वानर सेना को वो पीपल का पेड़ ...अपना सखा सा लगता I उसकी छाँव में अक्सर हमारा जमघट रहता ..सतोलिया ,कंचे ,लंगड़ी ,कब्बडी सभी वंही तो ..और रात गहराई तो चोर सिपाही भी खेलते वंही के वंही ...मंदिर की आरती के बाद प्रसाद के लिए लाइन लगाना ..और दादी की डांट.."सीधे रहो रे बावरों "

सुबह पहली किरण से जगता और यही रोज का सुकून देता नजारा दीखता ... पर जब मै उस पूनम के अगले दिन जगा तो मंदिर की घंटियों से ज्यादा एक अजीब सा कोलाहल सुनाई पड़ा .. सावन लग चूका था ..हलकी हलकी रिम झिम की सोंधी गंध को महसूस करता मैने खिड़की से झाँका की क्या हुआ है ...ये आवाजे है क्या .... घने काले मेघ छाए थे ..अस्पष्ट सा दिखाई दे रहा था ...आवाजें रहीम चाचू के घर से आ रही थी ..किलकारियां ...गाँव की वानर सेना आँखे फाड़े विस्मय से कुछ देख रही थी ...मैने उनकी निगाहों का पिछा किया देखा ...आँगन की गीली होती मिटटी मै कुछ रंगबिरंगी आकृति दोड़ रही है ...सर्राट ...मै और झुका देखने को ...माँ रम्भा को घास देती चिल्लाई बोली ..." गिरेगा क्या ...चल परे रह ..सब काम छोड़ इनका ध्यान रख्खो बस "मैने देखा रहीम चाचू की पोती जो शहर से आई है ...इस बार फिर कुछ मशीनी खिलौना लाई है ...मै भी जल्दी दोडा देखने ...दो दो सीढियाँ साथ फलांगता ...

दादी चिल्लाई ..." दोड़ मत गिरेगा ...रे छोरे"पर मै झट बस पहुंचा वंहा ..."देख रे चंदनिया हिलोर शहर से मशीनी गाड़ी लाई है ..."कार " कार बोले है इसको "मेरा दोस्त मदनु बोला ..."कित्ती मस्त दोड़ री एकदम असली रे " रामू भी बोला .. मेरा मन भी ललचा गया ...ऐसी की ऐसी देखि तो थी मैने शिवरात्रि के मेले में बाबा से कहा ...पर बड़े ज्यादा दाम थे इसके ....मै इसे अब तक भूल न पाया था ..काश ...... मै हिलोर से बोला ..."री हिलोर तनिक हमें भी तो खेलने दो ..कैसे चलती ये ...हाथ मै डिब्बा सा क्या ये ...इससे कैसे चलाती तुम..??." और हिलोर इतराई ...बोली ..."नहीं नहीं बड़ी महंगे पाड़ की है ...बाबा डाटेंगे मेरे को ...तुम सब दूर से देख लो बस .." घमंडी कंही की....पिछली बार आई हम ने इसको खूब बाड़ी के पके आम तोड़ -तोड़ के खिलाये थे ...अहसान फरामोश .. पूरी अंग्रेज इसके बापू की तरह ...

उस रात पर नींद रम्भा के नए जाये बछड़े सी ऐसी बिदकी की बस ..आँखों में तो बस वो रंगबिरंगी मशीनी गाडी ...नहीं नहीं कार ...कार दोड़ रही थी जूमम्म्म ..जूमम्म्म ..

रात को सब खेल रहे थे बाहर पर मै उस गाडी के बारे मै सोच रहा था ...पता नहीं कब रात के ग्यारह बज गए ...मैने यु ही रहीम चाचू के घर की और देखा ...सब सो चुके थे ...पर वो क्या उनके बरामदे मे ..क्या .??अ रे ..!! वही हाँ वही तो...वो कार पड़ी थी ...उसके जादुई डिब्बे के साथ ...

और तभी ..मेरे मन मै ..कुछ ...विकृत सा ..आया ...सब सोये है ...और वो कार ..सपनों की कार ..पड़ी है यु ही वंहा ...ले -ले ..मत डर ..है कोन जो..सब तो सोये पड़े है ..हाथ कांप रहे थे ..और ..और ..गला सुखा जा रहा था ..किसी ने देख लिया तो फिर ?? नहीं ...कोन देखेगा इत्ता अँधेरा हुआ है ..

मै धीरे- धीरे ..सीढिया उतरा ...रम्भा ने सर उठाया ..सोई नहीं थी ...उसकी आँखे मुझे घुरने लगी ..मैने ध्यान नहीं दिया ...आगे बड़ा देखा ..सभी सोये है ...मैने पीपल की डाल का सहारा लेके दिवार फांदी..और उस पार ...दिल तो जेसे कुए की रहट सा घड घड दोड़ रहा था ..

तभी कुछ जोर की आवाज हुई ...टन टननान ..कुछ बरतन गिरा..सबीना चाची की आवाज आई " या अल्लाह ..कौन है वंहा !!" और मै ...मै पसीने से नहा सा गया ...मर गया अब ...मैंने केले की बाड मै खुद को छुपा लिया ...तभी रहीम चाचा बोले .."सोजा वही कजरी बिल्ली होगी ...नाक मै दम कर रखा है .. नासपीटी ने "
और रहीम चाचा उस समय मेरे को बहुत अच्छे लगे ..एकदम प्यारे ...बच गया..फिर बस मै ..उस कार तक पंहुचा और उसको उठाते ही ...बस लपका घर की और ...जित्ता जल्दी हो सके मै अपने कमरे मै सुरक्षित पहुंचना चाहता था . और मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ...मुझे वो मिल गया था ..जिसकी कबसे बड़ी चाह थी ..पर मन मै कुछ अजीब सा हो रहा था ..बड़ा अजीब ..

और वो पूरी रात ..जागते कटी..पल पल ..निम् सा कड़वा ....सब ठीक होगा न ?? अजीब सा डर ...बैचेनी ...सुबह रम्भा चिल्लाने लगी ...लगा जैसे कह रही हो .."चन्दन चोर है ..चन्दन चोर है"
डरते -डरते रहीम चाचू के घर की और देखा ....हिलोर रो रही थी ...और चाचू उसे दुलार रहे थे ...कुछ बोल रहे थे ...ओह बेचारी ...ये मैंने क्या किया ...पुरे दिन ऐसे लगा जेसे बहुत गलत हुआ ...और हुआ भी तो ...दद्दा कहते थे चोरी पाप है ...बड़ा पाप ...मैने पाप किया है ...दिल दुखाया है हिलोर का
ये मेरे लालच ने क्या करवा दिया ..पर अब ... अब वापस कैसे करूँगा ...हुआ सो हुआ ...और देखा भी किसने जो डरूं ..देखा तो है ..रम्भा ने ....और हा पीपल ने ..जिसकी गोद मै खेले ..जिसके देखते बड़े हुए ...दद्दा कहते है ...पीपल साक्षात् विष्णु है ..शाखाएं विष्णु ..ब्रम्हा ..और सभी फल ..सभी देव..सबने तो देखा ...सभी देवो ने देखा है ..छिपा क्या है...दद्दा ने ये भी कहा ..हमारी वज़ह से किसी का दिल दुखे तो सबसे बड़ा पाप है ये तो ..हमारी संस्कृति मै यही कुछ बाते हमें विश्व मै महान बनती है I और ये क्या अधम हुआ मुझसे ...देखो तो पीपल की पत्तियां हिल हिल के बोल रही मेरे को ...चन्दन ये गलत है !

पर क्या गलत ...खिलौना ही तो है ...इत्ता बड़ा पाप तो नहीं है जो..पर क्या करू ?....और.. फिर मै आँगन मै गया पीपल को जल चढाया ...पंचाक्षर मन्त्र बोला और ...आँखे बंद कर ईश्वर का ध्यान कर बोला ..दद्दा कहते आप साक्षात इश्वर है...आप सभी को राह दिखाते ..गुरूजी कहते आप दिन रात हमको प्राणवायु देते हो ...चमत्कारी दीर्घजीवी हो ...क्या मुझसे वास्तव मै बड़ी गलती हुई तो ...मेरे फेलाए हाथों मै अपना एक पत्ता गिरा दो ...मै समझ जाऊँगा की मेरे से गलती हुई है ... और जब मैंने आँखे खोली तो देखा ...मेरे हाथ पर एक छोटा पीपल का पत्ता पड़ा है ...

मै समझ गया ...मेरी पलकों से आंसू गिरे ..पश्चाताप के आंसू ...मैने सोच लिया आज रात को फिर चुपके से कार को ...रहीम चाचा के आँगन मै रख दूंगा ...ताकि हिलोर की हंसी फिर लोट आये और मेरा पाप बोझ कम हो जाए ..

और वही किया ..अगली सुबह सब ठीक था ..वही मेरा खिड़की वाला सुकून देता नज़ारा ...फिर एक मुस्कान ...पर कंही एक बोझ था अब भी मन के कोने मे...आखिर सोचा दद्दा हा दद्दा से सब कहूँगा ...और तुरंत दोड़कर दद्दा से लिपट गया .."क्या रे छोरे..अब क्या किया ..हाँ ?

सब बता दिया सब का सब .....दद्दा बोले .." गलती तो की है ..तेणे...पर हाँ अहसास बी हो ग्या तेरे को ..जे अच्छी बात हुई ...और हाँ सुन ये हमारे संस्कार नि है रे ..कुछ पाना हो णा तो ..उस चीझ को पाणे के कई रास्ते होवे है ..अच्छे - बुरे ...पर जे हमें सोचना होता है की कोन्सl रास्ता चुने...मेहनत कर एक दिन भगवान सब देगा तेरे को "

और हाँ ...दद्दा सही थे मैने वो रास्ता समझ और चुन लिया ..आज सबकुछ है ..सबकुछ ...हाँ कार भी.. रंगबिरंगी ...असली एकदम असली ...में अब भी हर रोज़ पीपल को जल चडाता और पूजता हूँ ... क्यूंकि जान गया हूँ ..भारतीय संस्कृति भी पीपल की तरह दीर्घजीवी क्यों है ...कई आक्रान्ता आये राज़ किया ..सब संस्कृतियों को समाते हुए भी हमारी संस्कृति अक्षुण है ..पीपल की जड़ों सी गहरी ...बहुत गहरी पेठ ..
Story by - ♦♦Yogesh Amana♦♦