Wednesday, April 25, 2012

ऊँचे ख्वाब।।




              













" ऊँचे ख्वाब "

परिंदे की उड़ान सी सोच उसकी ..
कई -कई ख्वाब ..असीमित ही तो थी उड़ान उसकी ..उम्र ??
उम्र ..यही कोई १०-१२ साल ..
बहुत कुछ करना था उसको..
बहुत कुछ बदलने की चाह ...
पर वो नादाँ कंहा जानता था  ..की कई 
गिद्ध दृष्टि उसके सपनों को नोचने को आतुर ..
आसमान आईने सा साफ़ दीखता भर है ..
कई कठीन दीवारों से ऊँचा आसमान ..
पर वो निश्छल भाव से बोला -
"माँ तुम देखना ..में ढेर से पैसे कमाऊंगा ..
सब ठीक कर दूंगा ..
मै नहीं तो क्या ..
मुनिया जरूर उजाले में पड़ेगी..."
माँ आशंकित कातर नज़रों से ताकती ..
उस मासूम को अपने आँचल में कसने लगी ..
हाँ वो बड़ी डर रही थी ..
उस मासूम के उन ऊँचे ख़्वाबों से ...योगी 



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घरोंदा 



कुछ दूर था अभी भी ..

गली के बस उस मोड़ पर..
चंद कदम और बस ..
कुछ कदम ..
शाम को जल रहे चूल्हों से फेल रहा धुआं ..
घुटन सा.. पर सिक रही रोटियां ..इक सुकून 
पर ये थकन ..
दिनभर कि थकन ..
बस घर अब आने को है 
घर अब आने को है ..योगी 

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रात के इस पहर ..

निकला गली में पैदल कई दिन बाद ..
गली में पिछली  बार की तरह ..
चमेली के फूलों की गंध नहीं फैली थी ..
बस कुछ नए गुलदाउदी के फुल भर ...
सड़क पर फैली थी गुनगुनी पिली रोशनी ..
गोल दायरे में..सिमटी ..पतंगों को खींचती ..
कुत्तों की चोकस निगाहें ..मुज़ अजनबी को देख ..शंकित सी 
कैसे जानता वो मुझे ..कई दिन बाद मै निकला था पैदल ..
अपनी गली में ...नहीं शायद कई साल बाद ..योगी 
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यूँ तो क्या नहीं हासिल मुझे.. बस इक जीने की वज़ह के सिवा.. योगी