Saturday, June 8, 2024

गलियाँ

 मेरे कुछ भाव शब्दों के साथ ज़िंदगी का एक नज़रिया पेश है -

विषय - गलियाँ
बुनती कहानी हर भीगी शाम,
चीखती दीवारें, जैसे
बीते लम्हों का विराम।
सिकुड़ती सांसें, जैसे
रुक-रुक कर चले
एक अनजाना पैगाम।
अंधेरी गुप्प गलियां, जैसे
अनकहे राज़ों का
सदियों से है मुकाम।
सुनी अंखियां, बोले सन्नाटे,
जैसे छुपे हुए जज्बात,
आंखों में है बयां इलजाम।
टूटी खिड़कियाँ, जैसे
अधूरी उम्मीदें,
किसी सपने का अंजाम।
बेजान लम्हे, जैसे
अधूरे अरमान,
दिल के किसी कोने में गुमनाम।
यह शहर की चुप्पी, जैसे
अनकही कहानियाँ,
हर गली का है अपना कुहराम।
- योगेश 'योगी'

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